चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 3- सवैया कवित्त हिंदी प्रश्न 6

Answer :

yapu
उत्तर

कवि देव ने आकाश में फैली चाँदनी को स्फटिक (क्रिस्टल) नामक शिला से निकलने वाली दुधिया रोशनी के समतुल्य बताकर उसे संसार रुपी
 मंदिर पर छितराते हुए देखा है। कवि देव की नज़रें जहाँ तक जाती हैं उन्हें वहाँ तक बस चाँदनी ही चाँदनी नज़र आती है। यूँ प्रतीत होता है मानों धरती पर दही का समुद्र हिलोरे ले रहा हो।उन्होंने चाँदनी की रंगत को फ़र्श पर फ़ैले दूध के झाग़ के समान तथा उसकी स्वच्छ्ता को दूध के बुलबुले के समान झीना और पारदर्शी बताया है।

कवि ' देव ' अपने कवित्त में , चांदनी रात की

सुंदरता को प्रतीकात्मक रूप से वर्णन किया

है। कवि सुंदरता का वर्णन करते है कि ,

चांदनी रात को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है:-

• मानो कोई स्फटिक से बना एक मंदिर हो ।

वह कहते है :-

" फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर "

• मानो हर जगह दही फैला हुआ हो।

" उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद "

• मानो दूध का फेन पूरा आंगन में फैला हुआ

हो ।

" दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद "

• चांदनी रात में तारे जवान स्त्री की भांति

प्रतीत हो रही है ।साथ ही वह मोती के समान

भी दिखाई दे रहे है । वह मोती जिसको अब

रोशनी अर्थात् ज्योति मिल गया हो ठीक उसी

प्रकार जिस प्रकार फूल को रस मिलता है ।

"तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,

मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद "

• मानो कोई दर्पण हो जिससे रोशनी फैल रही

हो । जिससे पूरा अम्बर रोशनी से उज्वलित

लग रहा है ।

" आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै "

• मानो चांदनी रात का चांद, प्यारी राधिका का

प्रतिबिंब हो।

" प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद "

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