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दिए गए पद्यांश के अनुसार, संजाल (Sanjaal) को पूर्ण किया जा सकता है निम्नलिखित रूप में:
भूल जाओ वह पुरानी कथा
पनिया-जहाज पर कौन चढ़ेगा अब भैया,
मेरे हृदय के टुकड़ो !
बड़ा डर लग रहा है उससे तो
कहीं पुनः दोहरा न दे इतिहास हमारा
इस-उस धरती पर बिखर न जाएँ,
खोजते हुए निज बंधुओं को
आसमान की राह पकड़ आगे चल,
मॉरिशस की भूमि पर उतरेंगे सब नैहर हो जैसे
वही हमारा बाबुल के लोग वहीं मिलेंगे
परदेश के नाम मिटेंगे,
लघु भारत के प्रांगण में।
एक आँसू थामे वहीं मिलेंगे
स्वागत है।
भूल जाओ वह जहाजी कारनामे
जो होना था प्रारब्ध में,
ট वही तो हुआ हम सबके साथ अब रोना, रोने से क्या होगा?
०२ कवि मॉरिशस के प्रवासियों को कह रहा है
कि 3 4G+ जहाजी प्रणयन को सोचना क्या,
आज तो हम मिल ही रहे हैं,
युग-युगांतरों बाद देखो,
हम सब कैसे साथ हैं आज,
देश ७० स्वागत है !
इस पद्यांश को संजाल में पूर्ण करने के लिए, यह पद्यांश उदाहरण के रूप में दिखाया गया है कि कैसे प्रत्येक पंक्ति का समापन एक नया सम्बंधित पंक्ति के साथ किया जा सकता है।