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लेखक के पिता जी कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम नाम लिखकर उन्हें आटे की गोलियों में लपेटते थे और फिर उन गोलियों को मछलियों को खिलाते थे। यह उनकी धार्मिक आस्था और भक्ति का एक रूप था। वे मानते थे कि राम नाम लिखने और उसे मछलियों को खिलाने से पुण्य प्राप्त होता है।
इस प्रक्रिया में, पिता जी हर दिन पांच सौ बार राम नाम लिखते थे, जो उनकी नियमित धार्मिक साधना का हिस्सा था। इसका उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति था, बल्कि यह भी था कि इस कार्य के माध्यम से वे जीवों की सेवा कर सकें। मछलियों को आटे की गोलियां खिलाना उनके लिए एक धार्मिक कृत्य था, जिसे वे नियमित रूप से निभाते थे।