अलोपीदीन ने किस सहारे को चट्टान समझ रखा था ?​

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अलोपीदीन ने जिस सहारे को चट्टान समझ रखा था, वह पैरों के नीचे खिसकता हुआ मालूम हुआ

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अलोपीदीन ने संसार को अपने आत्मसाथी यानी सहारे को चट्टान समझा था। उन्होंने इसे अपनी धैर्यशीलता और स्थिरता के प्रतीक के रूप में वर्णित किया था। यह स्थिति उनके चरित्र 'अलोपीदीन' में उजागर की गई है, जो उनकी आध्यात्मिक और साहित्यिक रचनाओं का मुख्य विषय रहा है।

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