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परिस्थितियों को हम बहुत सरल भी बना सकते हैं और बहुत कठिन भी बना सकते हैं ।
यह तो हमारे हाथ में है कहते हैं जो आत्मिक स्तर पर जीते हैं उनके लिए परिस्थितिया, बहुत सरल होती हैं उनके अनुकूल होती है।
परंतु जो मानसिक स्तर पर जीते हैं उनके लिए परिस्थितियां प्रतिकूल होती है ।
अब यहां ध्यान देने वाली बात है कि आत्मिक स्तर क्या है, हम परिस्थितियों के गुलाम है या परिस्थितियां हमारी गुलाम है।
हम परिस्थितियों के गुलाम नहीं है।
हम एक आत्मा है। सर्वशक्तिमान अजर अमर अविनाशी, जन्म मरण से परे, सुख-दुख से परे, सारी परिस्थितियों से परे, परिस्थितियां आत्मा का कुछ नहीं बिगाड़ सकती। परिस्थितियां तो आत्मा की वजह से काम करती है । परिस्थितियों को तो आत्मा ही चल रही है ।
गाड़ी आप चलाते हैं गाड़ी आपके हाथ में है आपके बस में है, आप गाड़ी के बस में नहीं है।
फिल्म में जो रोल कर रहा है वह वास्तविक नहीं है, वास्तविक तो उसका कुछ और है।
पर्दे पर जो रोल खेल रहा है पर्दे के पीछे का सच नहीं है। पर्दे के पीछे का सच तो उसका वास्तविक स्वरूप है। नाटक मंच पर एक रोल प्ले कर रहा है, जो पूरा का पूरा डुप्लीकेट है। इसमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है।
परिस्थितियों को हमने पकड़ा है, परिस्थितियां हमें नहीं पकड़ी है। पेड की डाल को हम पकड़ लेते हैं, डाल हमें नहीं पकड़ता।
किसी भी चीज को हम पकडते हैं, हम जब चाहे तब छोड़ सकते हैं।
परिस्थितियां हमें मजबूर नहीं करती, हम परिस्थितियों के गुलाम बन जाते हैं, दास बन जाते हैं और उन्हीं के बारे में सोचते रहते हैं।
कहते हैं "जैसी भी हो स्थिति एक सी हो मनुस्थिति"
यह आत्मिक स्तर पर जीना है। कि आप एक रोल प्ले कर रहे हैं एक नाटक खेल रहे हैं। आप वास्तविक नहीं है। आप पर्दे के पीछे का सच एक आत्मा है।
जो अविनाशी है, सुख-दुख से परे है, हानि लाभ से परे है।
यहां पर जो जितता है वह भी हारता है, जो हारता है वह भी जीतता है। नाटक मंच पर हारने वाला भी जीत रहा है, जीतने वाला भी हार रहा है।
मैं मानता हूं कि मनुष्य जीवन में परिस्थितियां आती है, परंतु इस परिस्थितियों को अनुकूल बनाना हमारे हाथ में है, हम अनुकूल बना सकते हैं।