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गंगा नदी के किनारे एक बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर बहुत से पक्षी रहते थे। इन्हीं में एक कौआ भी था। कौआ लँगड़ा था और घमंडी भी।

बरगद के नीचे आराम करते हंस और पेड़ पर बैठा कौआ

एक दिन सुबह-सुबह तीन हंस बरगद के नीचे आकर बैठे। वे बहुत दूर से उड़कर आ रहे थे। यहाँ सुस्ताने के लिए ठहर गए थे। हंसों को देखकर लंगड़ा कौआ बोला, "अरे, आप यहाँ क्यों बैठे हैं? क्या यह बरगद आपका है?" कौए की बात का हंसों ने कोई उत्तर नहीं दिया। इस पर कौए को गुस्सा आ गया। वह उड़कर हंसों के अधिक पास आ गया। वह कहने लगा, "काँव, काँव, काँव। अरे, तुम लोगों के मुँह में जबान नहीं है क्या? बोलते क्यों नहीं? यहाँ क्यों आए हो?"

एक हंस बोला, "भाई, हम हंस हैं। हिमालय से आ रहे हैं। थोड़ी देर आराम करके यहाँ से चले जाएँगे।" कौआ बोला, "तुम लोग उड़ना भी जानते हो या नहीं। तुम्हारे पंख दिखावटी तो नहीं हैं?" हंस चुप रहे। कौआ फिर भी काँव काँव करता रहा। हंसों में से एक अभी बच्चा ही था। उसे कौए की बात चुभ रही थी। उसने

बोलना चाहा, लेकिन दूसरे हंस ने उसे रोक दिया।

कौआ फिर बोला, "अरे, उड़ना जानते हो, तो आ जाओ। मैं पचासों तरह की उड़ानें जानता हूँ। हो दम, तो मेरे साथ उड़ लो।" हंस के बच्चे से अब नहीं रहा गया। उसने कहा, "भैया, मुझे तो केवल एक उड़ान आती है। अगर उड़ना चाहो तो उड़ लो।"

कौए ने कहा, "बस ! एक ही उड़ान जानते हो। खैर उसे ही देखूँगा।" कौआ और हंस का बच्चा उड़ने लगे। दोनों गंगा नदी के ऊपर उड़ रहे थे। कौआ आगे था और हंस का बच्चा पीछे। कौए ने मुड़कर कहा, "इतने पीछे क्यों रह जाते हो ?" एक उड़ान जानते हो, सो भी अच्छी तरह नहीं। थक गए हो, तो बताओ।"

हंस बोला, "कोई बात नहीं है भैया, उड़े चलो।"

उड़ान भरता हंस का बच्चा और घमंडी कौआ

दोनों उड़ते रहे, कौआ फिर बोला, "थक गए क्या?" हंस उड़ते हुए बोला, "नहीं, उड़ते चलो।" आखिर कौआ उड़ते-उड़ते थक गया। उसका दम फूलने लगा। अब तो वह पानी में गिरने को हुआ।

हंस पीछे था। वह बोला, "पचासों उड़ानों में से यह कौन सी उड़ान है ?" कौए ने उत्तर दिया, "भैया, मैं तो मर रहा हूँ। तुम उड़ान की बात कर रहे हो।" हंस को कौए पर दया आ गई। वह कौए के पास पहुंचकर बोला, "जल्दी से मेरी पीठ पर बैठ जाओ।" कौआ हंस की पीठ पर बैठ गया। हंस ने कहा, "जमकर बैठे रहना। अंब मेरी उड़ान देखो।"

हंस तेजी से उड़ा। वह दूर आकाश में पहुँच गया। पीठ पर बैठा कौआ डर के मारे काँपने लगा। उसने तो बरगद के आसपास ही चक्कर लगाए थे। इतने ऊँचे उड़कर आने की बात कभी सोची भी न थी। डर के मारे उसका बोल बंद हो गया। गिड़गिड़ाते हुए वह हंस से बोला, "भैया मुझे तो जल्दी से बरगद पर पहुँचा दो। फिर तुम उड़ान भरना।" हंस बोला, "अरे, डर गए क्या ? चलते हो हमारा देश देखने ?"

"ना भैया, ना। हम तो यहीं भले हैं। तुम तो मुझे वापस ले चलो।" हंस को कौए पर फिर दया आ गई। वह कौए से बोला, "अभी तो घमंड की बड़ी- बड़ी बातें कर रहे थे। लेकिन अब क्या हो गया ?" कौआ कुछ न बोला।

अंत में हंस बरगद की ओर लौट पड़ा। वह धीरे-धीरे नीचे उतरा। कौआ उड़कर बरगद की डाल पर बैठ गया। वह फिर काँव-काँव करके हसों को चिढ़ाने लगा।

अब तुम्हीं बताओ कि कौए या हंस में से किसकी जीत हुई ?

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