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Answer:अद्वितीय, आदर्शित और उत्कृष्ट कविताएँ, सूरदास के पद अद्वितीय हैं। उनके पदों में भक्ति और प्रेम की अद्वितीय भावनाएँ व्यक्त होती हैं जो हमें भगवान के प्रति उनकी गहरी भक्ति को अनुभव कराती हैं।

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सूरदास ने तीन ग्रंथों की रचना की। ये तीन ग्रन्थ थे – सूरसागर , साहित्य लहरी और सूर सारावली। इन तीन ग्रंथों सूरसागर , साहित्य लहरी और सूर सारावली में से सूरसागर ही सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ। अर्थात सूरसागर को लोगों द्वारा अधिक पसंद किया गया। सूरदास को ‘ वात्सल्य ’ और ‘ शृंगार ’ का श्रेष्ठ कवि माना जाता है। सूरदास द्वारा कृष्ण और गोपियों के प्रेम के वर्णन से मानवीय प्रेम की बहुत ही सरल और मान – मर्यादा को दर्शाने वाली छवि समाज के सामने प्रस्तुत हुई है। सूरदास की कविता में ब्रजभाषा का निखरा हुआ रूप देखने को मिलता है। सूरदास ने अपनी कविताओं में अक्सर चली आ रही लोकगीतों की परंपरा को ही अच्छे ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की है।

प्रस्तुत पाठ में सूरदास के ग्रन्थ ‘ सूरसागर ‘ के ‘ भ्रमरगीत ‘ से चार पद लिए गए हैं। श्री कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों के पास संदेश भेजा था कि अब वे वापिस लौट कर नहीं आएँगे। उद्धव ने भी श्री कृष्ण के सन्देश को गोपियों तक पहुँचाया और उन्हें निर्गुण ब्रह्म की उपासना करने का उपदेश दिया अर्थात श्री कृष्ण गोपियों का उनके प्रति मोह तोड़ना चाहते थे इसलिए उन्होंने उद्धव के जरिए गोपियों को सन्देश भिजवाया कि ईश्वर अनादि , अनन्त है , वह न जन्म लेता है न मरता है , इसलिए वे मोह को त्याग दे एवं योग का सहारा ले कर अपनी विरह वेदना को शांत करने का प्रयास करें। परन्तु गोपियाँ इस तरह के ज्ञान मार्ग के बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थीं। इस कारण उन्हें उद्धव के द्वारा लाया गया श्री कृष्ण का यह सूखा संदेश पसंद नहीं आया। जब उद्धव और गोपियाँ बातें कर रहीं थी तब वहाँ एक भौंरा आ पहुँचा। यहीं से भ्रमरगीत का प्रारंभ होता है। गोपियों ने भ्रमर के बहाने उद्धव का बहुत मजाक बनाया। प्रस्तुत चार पदों में उद्धव और गोपियों के बीच हुए इसी वार्तालाप के एक अंश को दिखाया गया है।