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भक्तिकाल में सगुण भक्तिकाव्य के दो रूप हैं । इनमें से एक रामभक्ति और दूसरा कृष्णभक्ति शाखा । दोनों के ही कवि यह मानते कि जब निराकार ब्रह्म पृथ्वी पर अत्याचार, अधर्म के बढ़ने पर शरीर धारण कर अवतरित होता है, तब उसका रूप सगुण हो जाता है । इन कवियों ने ब्रह्म को लीलाएँ करते हुए दिखाया है।