1 गीता सार में से किसी भी अध्याय के दो शलोको की व्याख्या A4 शीट पर किखिए। Please Please Please answer the question Please Please Please I mark you as brainliest plz​

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जी हां, मैं आपकी मदद कर सकता हूँ। यहाँ दो श्लोकों की व्याख्या दी जा रही है:

### भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 47:

**श्लोक:**

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

**व्याख्या:**

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि वह केवल कर्म करने में ही अधिकारी हैं, कर्मफल के बिना। उन्हें फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि कर्मफल ही कर्मों का कारण नहीं होना चाहिए। इस श्लोक से समझाया जाता है कि सही कर्म करना महत्वपूर्ण है, परंतु उसके फलों की आशा को छोड़ देना भी उसके उच्चतम नैतिकता का हिस्सा है।

### भगवद गीता, अध्याय 9, श्लोक 22:

**श्लोक:**

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।

तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥

**व्याख्या:**

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण उन भक्तों के विशेष गुणों का वर्णन करते हैं जो उन्हें अनन्य भाव से सोचते और उन्हें निरंतर पूजते हैं। उन भक्तों के लिए भगवान स्वयं योगक्षेम का धारण करने का वचन देते हैं, अर्थात् उनकी रक्षा और सुरक्षा का संकल्प करते हैं। यह श्लोक भक्ति के महत्व को प्रकट करता है और उसे ईश्वरीय कार्यों के लिए निरंतर उत्साहित करता है।

Answer:

isme se ap ko koi do adhyay Google baba se nikal kr A4 sheet pr likh lene hai

pls mark as brainlist

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